Breaking News
कल से शुरू होगा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट, जाने मैच से जुडी बातें
कल से शुरू होगा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट, जाने मैच से जुडी बातें
मुख्यमंत्री धामी ने सौंग बांध परियोजना पर विस्थापन की कार्यवाही जल्द करने के दिए निर्देश
मुख्यमंत्री धामी ने सौंग बांध परियोजना पर विस्थापन की कार्यवाही जल्द करने के दिए निर्देश
दूनवासियों के लिए खतरा बनी हवा, चिंताजनक आंकड़े निकलकर आए सामने
दूनवासियों के लिए खतरा बनी हवा, चिंताजनक आंकड़े निकलकर आए सामने
कांतारा: चैप्टर 1 की रिलीज डेट आउट, 2 अक्टूबर 2025 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी फिल्म
कांतारा: चैप्टर 1 की रिलीज डेट आउट, 2 अक्टूबर 2025 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी फिल्म
उत्तराखण्ड बन रहा है खिलाड़ियों के लिए अवसरों से भरा प्रदेश- खेल मंत्री रेखा आर्या
उत्तराखण्ड बन रहा है खिलाड़ियों के लिए अवसरों से भरा प्रदेश- खेल मंत्री रेखा आर्या
सर्दियों में टूटने लगे हैं बाल तो इस चीज से करें मालिश, नहीं होगा नुकसान
सर्दियों में टूटने लगे हैं बाल तो इस चीज से करें मालिश, नहीं होगा नुकसान
केदारनाथ विधानसभा के प्रत्याशियों की तकदीर ईवीएम में हुई कैद
केदारनाथ विधानसभा के प्रत्याशियों की तकदीर ईवीएम में हुई कैद
क्रेश बैरियरों की खराब स्थिति को लेकर महाराज ने रोष जाहिर किया
क्रेश बैरियरों की खराब स्थिति को लेकर महाराज ने रोष जाहिर किया
दूरस्थ क्षेत्र पैठाणी में होगा उच्च शिक्षा को लेकर महामंथन
दूरस्थ क्षेत्र पैठाणी में होगा उच्च शिक्षा को लेकर महामंथन
समान संहिता या सियासत?

देश में समान नागरिक संहिता हो, यह अपेक्षा अपने-आप में उचित है। लेकिन ऐसी अपेक्षाओं का इस्तेमाल फौरी सियासी फायदे के लिए किया जाए, यह वाजिब नहीं है। इसलिए बेहतर होगा कि सरकारें पहले आम-सहमति से तैयार करें, ताकि उनके इरादे पर सवाल ना उठें।
उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। समान नागरिक संहिता लागू करना भारतीय जनता पार्टी के बुनियादी एजेंडे का हिस्सा रहा है। इसलिए इसमें कोई असामान्य बात नहीं है कि कोई भाजपा सरकार इसे लागू करने की दिशा में बढ़े। लेकिन मुद्दा प्रस्तावित संहिता के समान होने का है। समान संहिता का सीधा अर्थ यह है कि यह देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होगी, चाहे वे किसी मजहब, जाति या समुदाय से संबंधित हों। इस कसौटी को ध्यान में रखें, तो उत्तराखंड की पहल समस्याग्रस्त नजर आती है, क्योंकि राज्य के आदिवासी समुदायों को इससे बाहर रखने का फैसला किया गया है। क्यों और इसका क्या तर्क है? अगर कथित समान संहिता लागू होने के बाद भी आदिवासी समुदायों को अपनी परंपरा और मान्यताओं के मुताबिक जीने की छूट बनी रहेगी, तो यही सुविधा अन्य समुदायों को क्यों नहीं मिलनी चाहिए? इस बिंदु पर कर उत्तराखंड की संहिता एक स्पष्ट सोच या सही इरादे पर आधारित पहल लगने के बजाय फौरी राजनीतिक फायदे के मकसद से की गई पहल मालूम पडऩे लगती है।

इससे यह धारणा गहराती है कि इसके पीछे इरादा महजबी आधार पर ध्रुवीकरण को मजबूती देना है, ताकि भाजपा के समर्थक चुनावों में पार्टी को विजयी बनाने के लिए उत्साहित बने रहें। खबरों के मुताबिक नई नागरिक संहिता के लागू होने के बाद राज्य में बहु-विवाह, इद्दत, हलाला आदि जैसी प्रथाओं पर रोक लग जाएगी। लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों के लिए पुलिस में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी हो जाएगा। बाल विवाह पर भी रोक लगाने की बात इसमें शामिल की गई है, लेकिन यह कोई नई पहल नहीं है। बल्कि सवाल तो यह उठेगा कि इस सिलसिले में पहले से लागू कानून पर अमल सुनिश्चित कराने में भाजपा सरकार ने कितनी दिलचस्पी ली है? देश में समान नागरिक संहिता हो, यह अपेक्षा अपने-आप में उचित है। लेकिन ऐसी अपेक्षाओं का इस्तेमाल फौरी सियासी फायदे के लिए किया जाए, यह उचित नहीं है। इसलिए बेहतर होगा कि सरकारें पहले आम-सहमति से तैयार करें, ताकि उनके इरादे पर सवाल ना उठें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top